कोसी अंचल के विभिन्न भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों द्वारा भी अपनी रचनाओं में कोसी नदी, अंचल का जन-जीवन, कोसी गीत और लोकसाहित्य के पर्याप्त संदर्भों का उपयोग किया गया है। ऐसे लेखकों में सतीनाथ भादुड़ी, विभूतिभूषण मुखोपाध्याय, केदारनाथ बंद्योपाध्याय (बाङ्ला), फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, मायानंद मिश्र, प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, चंद्रकिशोर जायसवाल, शालिग्राम (हिन्दी), तारिक जमीली (उर्दू), साकेतानंद और रमेश (मैथिली) के नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इनके अलावा भी ऐसे बहुत से रचनाकार हैं, जिनकी असंख्य रचनाओं में कोसी नदी, जीवन और लोक संदर्भों का संस्पर्श मिलता है। ऐसे ही समय-समय पर विभिन्न अध्येताओं द्वारा कोसी नदी की विभीषिका के प्रति चिन्ता जतानेवाली और उसके समाधान सुझानेवाली रचनाएँ विभिन्न भाषाओं में और देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा नदी-केन्द्रित अध्ययनोंवाली महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में संकलित होती रही हैं। ऐसी छिटपुट गद्य-पद्य रचनाओं का यदि विधिवत संकलन-संपादन प्रकाशित करने की दिशा में प्रयत्न किए जाएँ तो निश्चय ही नदी-केन्द्रित लोकसांस्कृतिक अध्ययन के लिए विपुल सामग्री अध्येताओं को प्राप्त हो सकती है। रामदेनी तिवारी ‘द्विजदेनी’ की काव्य रचना 'श्री कौशिकी माहात्म्य' (1925 ई.), सतीनाथ भादुड़ी के बाड्.ला उपन्यास 'जागरी' एवं 'ढोड़ायचरितमानस' (हिन्दी अनुवाद: मधुकर गंगााधर), फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' (1954 ई.) एवं 'परती परिकथा' (1957 ई.) तथा रिपोर्ताज-संग्रह 'ऋणजल धनजल' (1978 ई.), केदारनाथ बंद्योपाध्याय का बाड्.ला उपन्यास 'आई हैज़', ललितेश्वर मल्लिक का कहानी-संग्रह 'सप्तकोसी', मायानंद मिश्र का उपन्यास 'माटी के लोग: सोने की नैया' (1967 ई.), ललित का मैथिली उपन्यास 'पृष्वीपुत्र', प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ का कथा-रिपोर्ताज-संग्रह 'सुनसरी' (1977 ई.), तारिक जमीली की उर्दू काव्य पुस्तिका 'पूर्णिया', मधुकर गंगाधर का उपन्यास 'सुबह होने तक' (1978 ई.), नागार्जुन का उपन्यास 'वरुण के बेटे', अनिलचंद्र ठाकुर का उपन्यास 'एक घर सड़क पर' (1982 ई.), शालिग्राम का उपन्यास 'किनारे के लोग' (1996 ई.), साकेतानंद का मैथिली उपन्यास 'सर्वस्वांत', विभूतिभूषण मुखोपाध्याय की बाड्.ला कृति 'कुसी प्रांगणेर चिट्ठी', रमेश का मैथिली कविता-संग्रह 'कोसी घाटी सभ्यता' (2004), सुरेन्द्र स्निग्ध का उपन्यास 'छाड़न' (2006 ई., तृतीय सं. 2009), चंद्रकिशोर जायसवाल के उपन्यास 'पलटनिया' (2007 ई.) एवं 'सात फेरे'(2009), रामधारी सिंह दिवाकर का उपन्यास 'अकालसंध्या' (2007 ई.) आदि अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाएँ मुख्यतः कोसी की त्रासदी झेल रहे जनजीवन पर ही केन्द्रित हैं। 'कुसी प्रांगणेर चिट्ठी' का मणिपद्म द्वारा किया गया मैथिली अनुवाद 'कोसी प्रांगणक चिट्ठी' के नाम से प्रकाशित है। रमेश की उक्त पुस्तिका उनके मैथिली संग्रह 'पाथर पर दूभि' (2004 ई.) में भी समाहित है, जिसका अजित कुमार आजाद द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद 'पत्थर पर दूब' (2007 ई.) के नाम से प्रकाशित है। विभिन्न विधाओं की कुछ छिटपुट रचनाएँ भी इस क्रम में याद आती हैं। मैथिली कहानियाँ ‘अपराजिता’ (राजकमल चैधरी), ‘डर’ (केदार कानन), ‘परलय’ (सुभाषचंद्र यादव), ‘कोसी’ (नारायणजी) के साथ-साथ हिन्दी में नवरंग जायसवाल की कहानी ‘कोसी मैया का दरेज’ और चंद्रकिशोर जायसवाल की कहानियाँ ‘अगले साल फिर अगले साल’, ‘बिशनपुर प्रेतस्य’ एवं ‘हिंगवा घाट में पानी रे’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। तीसरे सप्तक के कवि मदन वात्स्यायन की कविता ‘कोसी’, कोसी की लोककथाओं पर आधारित सुरेन्द्र स्निग्ध की कविताएँ, रामकृष्ण झा ‘किसुन’ की मैथिली कविता ‘कोसीक बाढ़ि’, मैथिली गीतकार नवल का गीत ‘मलहवा रे...’, नंदकिशोर लाल ‘नंदन’ का गीत ‘निष्ठुर कोसी माय’ और कोसी की छाड़न धाराओं पर रचित नारायण प्रसाद वर्मा के हिन्दी गीत भी यहाँ याद आते हैं। यों तो कोसी अंचल के निवासी/प्रवासी सभी भाषाओं के लेखन की पृष्ठभूमि और प्रेरणास्रोत प्रकारांतर से कोसी नदी और कोसी अंचल का जनजीवन प्रायः रहा ही है। इस दृष्टि से कोसी अंचल के प्रतिनिधि लेखन को रेखांकित करनेवाली कुछ समेकित पुस्तकों का जिक्र समीचीन होगा। रजी अहमद तनहा और बसंत कुमार राय द्वारा संपादित कहानी-संग्रह 'रेणु माटी के कथाकार' (1991 ई.), बच्चा यादव द्वारा संपादित कहानी-संग्रह 'कथा कोशी' (1997 ई.), प्रभुनारायण विद्यार्थी द्वारा संपादित कविता-संग्रह 'कविता कोसी तीर की', सुशील कुमार आचार्य द्वारा संपादित कविता-संग्रह 'अंग जनपदीय सोपान' (1999 ई.), सत्येन्द्र इंदुराज द्वारा संपादित कविता-संग्रह 'काव्य तरंग' (2006 ई.), विनय कुमार चैधरी द्वारा संपादित गजल-संग्रह 'सदी के पार की गजलें' (2007 ई.), महेन्द्रनारायण ‘पंकज’ द्वारा संपादित लघुकथा-संग्रह 'कोशी अंचल की लघुकथाएँ' (2006 ई.), कलाधर द्वारा संपादित कविता-संग्रह 'समकालीन कविताएँ' (2008 ई.) और हरिनारायण नवेन्दु द्वारा संपादित कविता-संग्रह 'आखर के नए घराने' (2008 ई.) के साथ-साथ देवेन्द्र कुमार देवेश के संपादन में प्रकाशित पुस्तक-शृंखला 'कविता कोसी' के प्रकाशित पाँच खंडों (प्रथम 2007 ई., द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ 2008 ई. तथा पंचम 2009 ई.) ने साहित्य संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। कविता कोसी के माध्यम से संपादक का प्रयत्न कोसी नदी, कोसी-केन्द्रित विमर्श और कोसी अंचल की साहित्यिक विरासत के आकलन के साथ-साथ समकालीन प्रतिनिधि काव्य रचना को संकलित एवं समीक्षित करने का है। कोसी अंचल से प्रकाशित होनेवाली पत्र-पत्रिकाओं में अंचल के रचनाकार और कोसी-केन्द्रित विमर्श निरंतर स्थान पाते ही रहे हैं। अगस्त 2008 में कुसहा के पास कोसी का पूर्वी तटबंध टूटने से आई प्रलयंकारी बाढ़ के बाद भी अनेक लेखकों-कवियों की अनुभूतियाँ और चिन्ताएँ उनकी रचनाओं के माध्यम से पत्र-पत्रिकाओं में और एकाधिक पुस्तिकाओं के रूप में सामने आई हैं। ऐसी रचनाओं में सुखदेव नारायण, वरुण कुमार तिवारी, सकलदेव शर्मा, राधेश्याम तिवारी, श्रीप्रकाश शुक्ल, ठाकुर शंकर कुमार और नीरज कुमार की कविताएँ, रामाज्ञा राय शशिधर का रिपोर्ताज, ब्रजबिहारी कुमार, दिनेशचंद्र मिश्र, हेमंत, नगेन्द्र, पुष्पराज, ओमप्रकाश भारती, अरुण कुमार और पंकज कुमार के आलेख महत्त्वपूर्ण हैं। पुस्तिकाओं में देवेन्द्र कुमार देवेश की 'कोसी नदी: परिचय एवं संदर्भ', रामाज्ञा राय शशिधर द्वारा संपादित 'बाढ़ और कविता' तथा ओमप्रकाश भारती द्वारा संपादित 'कोसी मित्र' पत्रिका के अंकों का उल्लेख किया जा सकता है। अनेक व्यावसायिक और लघुपत्रिकाओं ने भी कोसी और इसकी बाढ़ पर विशेष सामग्री प्रकाशित की।
यूँ तो ब्लॉग पर स्तरीय सामग्री का बहुधा अभाव ही रहता है लेकिन आपकी इस शोधपरक रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ! धन्यवाद और ऐसे ही लिखते रहें !
ReplyDeleteबहुत अच्छा, देखकर मन प्रसन्न हुआ। आपका यह प्रयास उत्तरोतर प्रगति पथ पर अग्रसर होता रहे। आपका शोध एवं संदर्भ महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteबधाई।
नियमित पढ़ता रहूंगा।
सादर
देवेशजी,
ReplyDeleteनमस्कार!
बधाई हो आपको।
अच्छा ब्लॉग है।
आदर्श कुमार, स्टार न्यूज, दिल्ली।
ये और इसके जैसे ब्लॉग के माध्यम से ही इंटरनेट पर हिन्द को नवजीवन मिला है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख आप अपने ब्लॉग पर लिखते हैं। धन्यवाद।
ReplyDeleteरेणु के बाद कोशी अंचल के सबसे बड़े कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल जी है। इसमें कोई दो राय नहीं है।
प्रचार और मंडी तथा जमात से दूर रहकर निरंतर सृजन करने वाले कथाकार ।