Wednesday, December 16, 2009

कोसी नदी : शोध- संदर्भ

कोसी क्षेत्र का पहला प्रामाणिक नक्शा मेजर जेम्स रेनेल नामक एक अंग्रेज सर्वेयर द्वारा पहली बार 1779 ई. (मेमोयर्स ऑफ द मैप ऑफ हिन्दुस्तान, 1788 ई.) में तैयार किया गया था, जिसमें कोसी नदी के तत्कालीन प्रवाह-मार्ग की आधिकारिक जानकारी मिलती है। इसके बाद उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ (1809-10 ई.) में अंग्रेज भूगोलवेत्ता फ्रांसीस बुकानन द्वारा तैयार किए गए 'एन एकाउंट ऑफ द डिस्ट्रिक्ट ऑफ पूर्णिया' को याद करना उचित होगा, जिसमें उन्होंने कोसी नदी की पूर्व और तत्कालीन धाराओं के अध्ययन के साथ-साथ कोसी अंचल के जन-जीवन पर एक गहन सर्वेक्षण प्रस्तुत किया था।

इसके पश्चात् रॉबर्ट मांट गुमरी मार्टिन की पुस्तक 'द हिस्ट्री, एंटिक्विटीज, टोपोग्राफी एंड स्टैटिस्टिक्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया' (1838 ई.) तथा डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर द्वारा लिखित पुस्तक शृंखला ‘स्टैटिस्टिकल अकाउंट्स ऑफ बंगाल’ के पंद्रहवें खंड (डिस्ट्रिक्ट ऑफ मुंगेर एंड पूर्णिया, 1877 ई.) में कोसी नदी और इस क्षेत्र के बारे में पर्याप्त विवरण उपलब्ध होते हैं। इस क्रम में 'जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' (दिसंबर, 1895 ई.) में प्रकाशित एफ.ए. शिलिंगफोर्ड और चार्ल्‍स इलियट के ‘ऑन चेन्जेज इन कोर्स ऑफ कुसी रिवर एंड द प्रोबैबल डेन्जर्स अराइजिंग फ्रॉम देम’ शीर्षक लंबे लेख भी उल्लेखनीय हैं। शिलिंगफोर्ड का लेख 1895 ई. में ही बैप्टिस्ट मिशन प्रेस, कोलकाता से 'कोसी रिवर' के नाम से पुस्तकाकार भी प्रकाशित हुआ था।

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में 'जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' (सितंबर 1908 ई.) में प्रकाशित एफ.सी. हर्स्‍ट का आलेख ‘द कोसी रिवर एंड सम लेशंस फ्रॉम इट’ कोसी नदी पर एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन है। जे. बिर्ने द्वारा तैयार किए गए 'डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ भागलपुर' (1911 ई.) तथा एल.एस.एस. ओ’मैली द्वारा तैयार किए गए 'डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ पूर्णिया' (1911 ई.) में कोसी नदी और उसके तटवर्ती जीवन के संदर्भ मिलते हैं। 1946 ई. में प्रकाशित हरिनाथ मिश्र की पुस्तक 'द कोसी प्रॉब्लेम' भी कोसीजनित समस्याओं को समझने में सहायता करती है।

भारत की स्वतंत्रता के बाद बिहार सरकार द्वारा पी.सी. राय चौधुरी द्वारा तैयार किए गए 'पूर्णिया' और 'सहरसा' शीर्षक से इन जिलों के गजेटियर क्रमशः 1963 और 1965 ई. में प्रकाशित किए गए, जिनमें कोसी अंचल का सांगोपांग सर्वेक्षण और अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। 'सहरसा' गजेटियर में कोसी प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता देवेश मुखर्जी की सहायता से तैयार किया गया ‘द कोसी’ शीर्षक अध्याय यहाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो कोसी नदी की भौगोलिक स्थिति और तज्जनित समस्याओं एवं उनके समाधान के प्रयत्नों पर प्रकाश डालता है।

स्वातंत्र्योत्‍तर काल में कोसी नदी पर पहली सुविचारित कृति 'कोसी' (1953 ई.) नाम से ललितेश्वर मल्लिक द्वारा प्रस्तुत की गई, जिसमें उन्होंने कोसी की भौगोलिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालते हुए कोसी अंचल के बीहड़ जन-जीवन और समस्याओं को सामने रखा। इसका दूसरा संशोधित संस्करण भी 1961 ई. में प्रकाशित हुआ। निजी तौर पर किए गए कोसी नदी के सर्वेक्षणों में 'बिहार की नदियाँ', प्रथम खंड (1977 ई.) में पंडित हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय’ द्वारा कोसी और उसकी सहायक नदियों पर किया गया भौगोलिक और सांस्कृतिक सर्वेक्षण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

'कोसी प्रोजेक्ट' के नाम से 1981 ई. में प्रकाशित निरंजन पंत की पुस्तक सिंचाई और प्रशासनिक दृष्टि से कोसी प्रोजेक्ट का अविकल अध्ययन प्रस्तुत करनेवाली एक महत्त्वपूर्ण कृति है। विजयशंकर पांडेय और परमेश्वर गोयल द्वारा 1992 ई. में प्रस्तुत किए गए 'महाकोशी' (एक सांस्कृतिक सर्वेक्षण) का उल्लेख भी समीचीन होगा। विजयशंकर पांडेय के संपादन में 1995 ई. में 'कोशी क्षेत्र: आर्थिक सर्वेक्षण' नामक एक अन्य पुस्तक भी प्रकाश में आई। आपदा-प्रबंधन की दृष्टि से विभिन्न नदियों के गहन अध्येता दिनेश कुमार मिश्र की पहली पुस्तक 'बंदिनी महानंदा' (1994 ई.) में पूर्णिया अंचल और महानंदा नदी के अध्ययन-क्रम में प्रकारांतर से कोसी नदी की भयावह स्थितियों का भी आकलन किया गया है।

इक्कीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में कोसी नदी, कोसी गीत और कोसी के तटवर्ती जनजीवन को लेकर एक महत्त्वपूर्ण कार्य ओमप्रकाश भारती ने 'नदियाँ गाती हैं' (2002 ई.) के रूप में प्रस्तुत किया है। 2005 ई. में प्रकाशित 'कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें' नामक पुस्तक में हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने कोसी अंचल के ऐतिहासिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संदर्भों को आकलित किया है। इस दिशा में अद्यतन प्रयत्न दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'कोसी नदी की कहानी: दुइ पाटन के बीच में...'(2006 ई.) के रूप में सामने आया है, जिसे लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसमें कोसी नदी और अंचल के भौगोलिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक अध्ययन के साथ-साथ यहाँ की त्रासद स्थितियों के वैज्ञानिक और सुविचारित समाधान की चिन्ता भी है।

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