Tuesday, September 7, 2010

कोसी अंचल के राज्‍याश्रित कवि

राजा वेदानंद सिंह के दरबारी कवि श्यामसुंदर बाद में उनके सुपुत्र राजा लीलानंद सिंह के आश्रित भी रहे। गोपी महाराज भी राजा लीलानंद सिंह के दरबारी कवि थे। श्यामसुंदर और गोपी महाराज, दोनों ने ही अपनी काव्य-रचना की उत्कृष्टता के कारण पर्याप्त प्रसिद्धि पाई थी, पर उनकी रचनाओं के उदाहरण प्राप्त नहीं होते। कहते हैं कि एक बार राजा लीलानंद सिंह ने गोपी महाराज की काव्य-रचना पर प्रसन्न होकर दानस्वरूप एक हाथी दिया था, तब श्यामसुंदर ने निम्नांकित पंक्तियाँ निवेदित कीं-
अहो हंस अवतंस-मणि, यह अचरज मोहि भान।
गोपी हाथी पै चढ़े, पैदल सुंदर श्याम।।
उनकी इस उक्ति पर प्रसन्न होकर राजा साहब ने उन्हें भी पुरस्कार-स्वरूप एक हाथी दिया।
श्‍यामसुंदर के पूर्वज पंजाब-निवासी थे। वे महाराज माधवेन्‍द्र के भी आश्रित रहे थ। पं. सदानंद द्वारा कलकत्‍ते से प्रकाशित पत्रिका 'सारसुधानिधि' के मुखपृष्‍ठ पर श्‍यामसुंदर कवि द्वारा रचित मंगलाचरण ही प्रकाशित हुआ करता था, जो इस प्रकार था-
कुमुदरसिक मन मोदकरि, दरि दुख तम सर्वत्र।
जगपथ दरसावै अचल, सारसुधानिधि पत्र।।
आठ-दस अंक निकलने के बाद 'सारसुधानिधि' का प्रकाशन बंद हो गया, तो श्‍यामसुंदर जी ने पं. सदानंद को पत्र लिखा कि 'क्‍या कारण है कि कई सप्‍ताह से पत्र नहीं आता।' उन्‍होंने मजाक करते हुए उत्‍तर दिया कि 'आपने ऐसा मंगलाचरण बनाकर दिया कि पत्र का प्रकाशन ही बंद हो गया।' कवि श्‍यामसुंदर ने दोहे को ध्‍यान से देखा तो 'अचल सारसुधानिधि पत्र' वाले स्‍थान पर रुक गए। उन्‍हें विश्‍वास हो गया कि इसी दोष से पत्र बंद हो गया, और दोहे में अचल के स्‍थान पर विमल लिखकर भेज दिया। बाद में पत्र का प्रकाशन फिर शुरू हुआ और वर्षों तक निकलता रहा।
कवि श्‍यामसुंदर की एकमात्र प्रकाशित कृित 'लक्षण-वर्णन' का उल्‍लेख मिलता है। उनकी अन्‍य 28 कृतियों की पांडुलिपियॉं अवधपुर स्‍िथत भगवान पुस्‍तकालय में सुरक्षित हैं। 'हिन्‍दी साहित्‍य और बिहार' के चतुर्थ खंड (सं. बजरंग वर्मा एवं कामेश्‍वर शर्मा 'नयन', 1984 ई.) के अनुसार ये कृतियॉं हैं-'ऋतु-वर्णन', 'छंदसरोवर', 'चित्रकाव्‍यमद्य', 'गंगालहरी', 'ध्‍यानकल्‍याण', 'निर्णयछंद-प्रबंध', 'बारहमासा', 'कविप्रकाश', 'रस-वर्णन', 'वर्ण-विचार', 'अंतर्लापिका'श्रीनगर-बनैली के राज्याश्रित कवियों में जयगोविन्द महाराज का नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मिश्र बंधुओं ने भी अपनी पुस्तक मिश्रबंधु-विनोद में उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है। उन्होंने उनका जन्म 1910 वि. (1843 ई.) और निधन: 1970 वि. (1913 ई.) बताया है। जयगोविन्द महाराज पूर्णिया जिले के बरौरा (श्रीनगर) ग्राम निवासी ब्रह्मभट्ट थे। उनके राजा कमलानंद सिंह ‘साहित्य-सरोज’ (1865-1903 ई.) तथा उनके सगे भाई कुमार कालिकानंद सिंह के आश्रित होने का उल्लेख मिलता है। राजा कमलानंद सिंह के निधन के बाद वे मदारीचक, कटिहार आकर बस गए, जहाँ उनका निधन 1915 ई. के नवंबर महीने (बड़हरा कोठी, पूर्णिया-निवासी अध्यापक रामनारायण सिंह ‘आनंद’ के अनुसार, जो उनकी वृद्धावस्था में उनके निरंतर संपर्क में थे) में हुआ था।
जयगोविन्द महाराज ने 1940 वि. में काव्य-रचना का विधिवत श्रीगणेश किया था। वे रीतिकालीन परंपरा के कवि थे। पिंगल, अलंकार, नायिका-भेद, रस, गुण आदि पर उनका पूरा अधिकार था। उनकी रचनाएँ प्रायः सरस और प्रसाद गुणयुक्त ब्रजभाषा में हैं, जो प्रकृति-चित्रण और भक्ति भावना से ओतप्रोत हैं। वे परम वैष्णव और गीता के अनन्य भक्त एवं उपासक थे। 'काव्य-सुधाकर' (पटना), 'व्यास पत्रिका' और 'रसिकमित्र' (कानपुर, 1898 ई.) में उनकी रचनाएँ एवं समस्यापूर्तियाँ छपा करती थीं। उनके द्वारा लिखित निम्नांकित अप्रकाशित कृतियों का जिक्र मिलता है-'साहित्य पयोनिधि', 'अलंकार-आकर', 'कविता-कौमुदी', 'समस्यापूर्ति' और 'दुर्गाष्टक'। 'अलंकार-आकर' की पांडुलिपि का पूर्णिया निवासी साहित्यरत्न रूपलाल के निजी संग्रह में सुरक्षित होने का उल्लेख मिलता है।
महादेव उपाध्याय ‘शुभ कवि’, हनुमान कवि, भगवंत कवि और शीतल प्रसाद राजा कमलानंद सिंह के आश्रित कवियों में थे। ब्रजभाषा में लिखित इनकी स्फुट काव्य-रचनाएँ ही प्राप्त होती हैं। शुभ कवि की समस्यापूर्तियाँ और रचनाएँ 'रसिकमित्र' (कानपुर) में छपा करती थीं। हनुमान कवि ‘मानकवि’ के नाम से विख्यात थे। शीतल प्रसाद काशी के मूल निवासी थे, किन्तु श्रीनगर (पूर्णिया) के राजाश्रित कवि थे। भगवंत कवि (पूर्णियावासी) द्वारा ब्रजभाषा में रचित स्फुट काव्य-रचनाएँ 'काव्य-सुधाकर' पत्रिका में प्रकाशित मिलती हैं।

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