कोसी नदी की विध्वंसक प्रवृत्ति के बावजूद कोसी अंचल ने अपनी लोकधर्मी सांस्कृतिक इयत्ता को सदैव बरकरार रखा है। जीवट के धनी यहॉं के लोगों ने न केवल कोसी की विकट धाराओं से संघर्ष किया है, उसका अभिशाप और संताप झेला है, वरन उनके आसपास जीवन को उसकी भरपूर जीवंतता और खिलंदड़ेपन के साथ जिया भी है। 'कविता कोसी' कोसी नदी और अंचल के भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक सदर्भों सहित अंचल की साहित्यिक विरासत को संरक्षित और प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास है।
Wednesday, July 7, 2010
कोसी अंचल के दो आरंभिक कवि
अन्य सिद्ध कवियों में निर्गुणपा (ग्यारहवीं शती) को भी हम कोसी अंचल का मान सकते हैं। चैरासी सिद्धों में उनका स्थान 57वाँ है। उनका निवास-स्थान पूर्व देश बताया गया है। पूर्वदेश से राहुल सांकृत्यायन का तात्पर्य भंगल और पुंड्रवर्द्धन से है। स्तन्-ग्युर में अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी में रचित उनकी एक कृति शरीर-नाडिका-बिन्दुसमता संगृहीत है।
बौद्धधर्म प्रचारक विनयश्री (बारहवीं शती) का निवास-स्थान पूर्वी मिथिला बताया गया है। यह निर्विवाद रूप से कोसी अंचल ही है। उनका संबंध विक्रमशिला, नालंदा और जगतल्ला के बौद्ध बिहारों से था। मुस्लिमों द्वारा इन विहारों के नष्ट हो जाने के पश्चात् वे अपने गुरु शाक्य-श्रीभद्र और अन्य व्यक्तियों के साथ 1203 ई. में तिब्बत पहुँचे। उस समय उनकी अवस्था 35 वर्षों से कम नहीं थी। उन्होंने शाक्य-श्रीभद्र को अनेक भारतीय ग्रंथों के भोट-भाषा में अनुवाद करने में सहायता की। जगतल्ला-विहार के पंडितों-विभूतिचंद्र, दानशील, सुगतश्री, संघश्री (नैपाली) आदि साथियों के साथ उनके तिब्बत के ‘स. स्क्य-विहार’ में भी रहने का उल्लेख मिलता है। वहीं राहुल सांकृत्यायन को 12-13वीं सदी में लिखित कुछ पृष्ठ मिले, जिनमें विनयश्री के 15 गीत हैं। वे मैथिली भाषा में रचना किया करते थे।
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"बेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट..."
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