Thursday, October 21, 2010

भक्‍त कवि लक्ष्‍मीनाथ परमहंस

भक्ति साहित्य की परंपरा में वर्तमान सुपौल जिलांतर्गत परसरमा ग्राम में 1788 ई. में जन्मे लक्ष्मीनाथ परमहंस का कृतित्व महत्त्वपूर्ण है। उन्हें लक्ष्मीनाथ गोसाईं, लक्ष्मीपति, गोस्वामी लक्ष्मीनाथ, गोस्वामी लक्ष्मीपति परमहंस नामों से भी जाना जाता है। कविताओं में उनके लखन और लक्षन नाम भी मिलते हैं। वे एक सिद्ध योगी, तांत्रिक, अद्वैत वेदांती और समाजसेवी थे तथा उन्होंने अपनी काव्य-रचना के माध्यम से ज्ञान एवं भक्ति-उपासना में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया है।
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ‘भारतीय साहित्य निर्माता’ शृंखला के अंतर्गत मैथिली में प्रकाशित 'लक्ष्मीनाथ गोसाँइ' शीर्षक विनिबंध (2000 ई.) के लेखक खुशीलाल झा ने लक्ष्मीनाथ परमहंस के अवदान का मूल्यांकन करते हुए लिखा है-”कबीरदास की तरह लक्ष्मीनाथ गोसाँई न तो पूरी तरह निर्गुण ब्रह्म में निमग्न हुए और न ही तुलसीदास की तरह सगुण ब्रह्म के प्रबल समर्थक। वे ब्रह्म के दोनों स्वरूपों में अभेद-संबंध के समर्थक थे।’’ (पृ. 49 के उद्धरण का हिन्दी अनुवाद)
लक्ष्मीनाथ परमहंस की रचनाओं में उनकी गीतावली, दोहावली, भजन और अनुवाद शामिल हैं। उन्होंने लगभग पाँच हजार भजनों की रचना की थी। वे एक रस-सिद्ध कवि थे। उनकी रचनाओं की भाषा सरल-सहज खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा या मैथिली है। उनकी समस्त भजनावली लोकधुन पर आधारित और गेय है। यद्यपि उनका उद्देश्य काव्य-कौशल का प्रदर्शन नहीं था, तथापि उनकी रचनाओं में प्रायः समस्त काव्यशास्त्राीय तत्त्व मिलते हैं। उनका संपूर्ण रचनाकर्म ब्रह्मास्वाद-सहोदर रस के रसास्वादन का प्रतिफल है।
लक्ष्मीनाथ परमहंस की मौलिक कृतियाँ हैं--श्रीराम गीतावली, श्रीकृष्ण गीतावली, श्रीराम रत्नावली, अकारादि दोहावली, गुरु चैबीसी, परमहंस भजन-सार, योग-रत्नावली, महेशवाणी, निर्गुणवाणी, संग्रह गीतावली, हठयोग, मोहमुद्गर और वंदी मोचन; जबकि अनुवाद-कृतियाँ हैं--श्रीकृष्ण रत्नावली, भाषा तत्त्वबोध, प्रश्नोत्तर रत्नमणि माला। गुरु पचीसी, जीवन-चरित तथा वाजसनेयोपनिषद (हिन्दी अनुवाद) नामक कृतियों का उल्लेख भी उनके नाम से मिलता है।
लक्ष्मीनाथ परमहंस के परम शिष्य जॉन क्रिश्चियन ने उनकी दोहावली और गीतावली की एक पांडुलिपि ‘वृहत् ग्रंथावली’ के नाम से तैयार की थी, जो मैथिली के प्रख्यात विद्वान और साहित्यकार डॉ. सुभद्र झा के निजी संग्रह में थी। लक्ष्मीनाथ की पहली प्रकाशित कृति विवेकरत्नावली है, जो. पं. केशवलाल झा द्वारा संपादित तथा राधाप्रेस, भागलपुर से 1922 ई. में मुद्रित है। इसी ग्रंथ का दूसरा संस्करण विवेक पंचरत्न के नाम से पं. छेदी झा द्विजवर द्वारा संपादित लक्ष्मीनाथ साहित्य प्रकाशन मंडल, वनगाँव, सहरसा से प्रकाशित और सहयोग प्रेस, सुपौल से मुद्रित है। इसमें लक्ष्मीनाथ की पाँच दोहावलियाँ--प्रश्नोत्तर रत्न मणिमाला, अकारादि दोहावली, भाषा तत्त्वबोध, श्रीराम रत्नावली और गुरु चौबीसी संकलित हैं। इनमें से प्रश्नोत्तर रत्नमणिमाला शंकराचार्य कृत प्रश्नोत्तर का भाषानुवाद तथा भाषा तत्त्व बोध शंकराचार्य की ही कृति तत्त्वबोध का आंशिक अनुवाद है। अकारादि दोहावली में 54 दोहे हैं, जो क्रमशः हिन्दी वर्णमाला के ‘अ’ से लेकर ‘क्ष’ अक्षरों से आरंभ होते हैं। इस कृति के प्रारंभिक दोहों में हठयोग और उसके विविध आयामों तथा उत्तरार्द्ध के दोहों में वेदांत-दर्शन के रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। यह कृति योग के साथ वेदांत-दर्शन के समन्वय का प्रयत्न करती है। श्रीराम रत्नावली में कुल 111 दोहे हैं। इसका प्रथम दोहा मंगलाचरण एवं गुरु-वंदना का समन्वित रूप है। शेष 110 दोहे ‘राम’ शब्द से ही शुरू होते हैं तथा प्रत्येक दोहे में लेखक का नामोल्लेख ‘लक्षन’ या ‘लक्ष्मीपति’ के रूप में किया गया है। अंतिम दोहे में क्रमशः दोहावली की समाप्ति के वर्ष, माह, पक्ष और दिन का उल्लेख है, जिससे इसका रचनाकाल शक संवत 1756 के आषाढ़ की अमावस्या निर्धारित होती है। यह प्रायः उपदेशात्मक कृति है, जिसमें नीति संबंधी उपदेश, संत-महिमा तथा राम की चाकरी का बखान और आयुर्वेदीय उपचार का वर्णन मिलता है। गुरु चौबीसी में कुल 26 दोहे हैं, जिनके माध्यम से महात्मा दत्तात्रोय द्वारा 24 प्राकृतिक पदार्थों को गुरु मानकर सीख ग्रहण करने के उपदेश को अभिव्यक्ति दी गइ है।
लक्ष्मीनाथ परमहंस की दूसरी प्रकाशित कृति पंचरत्न गीतावली है, जिसकी भूमिका पं. अनंतलाल मिश्र ने लिखी है और जो बाबू उदित नारायण सिंह के आर्थिक सहयोग से तारा प्रिटिंग वक्र्स, मुंगेर से 1929 ई. में मुद्रित हुई है। इसमें लक्ष्मीनाथ की पाँच गीतावालियाँ श्रीरामगीतावली, श्रीकृष्णगीतावली, महेश वाणी, निर्गुण वाणी तथा संग्रह गीतावली संगृहीत हैं। इस ग्रंथ में कुल गीतों की संख्या 160 है। श्रीरामगीतावली में रामकथा से संबंधित प्रायः सभी प्रमुख एवं मार्मिक स्थलों का चयन कर क्रमबद्ध संयोजित किया गया है। यह कृति वाल्मीकीय रामायण, अध्यात्म रामायण और श्रीरामचरितमानस पर आश्रित है। श्रीकृष्णगीतावली में कृष्ण की गाथा संग्रथित है। यह श्रीमद्भागवत, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता और गीत गोविन्द पर आश्रित है। दोनों ही कृतियाँ गीति-मुक्तक में हैं, लेकिन इनका सु-योजित प्रबंधकत्व इनके महाकाव्यत्व की प्रतीति कराता है। कथा-कौशल की दृष्टि से लघु कलेवर में भी श्रीराम और श्रीकृष्ण के सुविस्तृत आख्यानों को इतने रोचक और आकर्षक ढंग से संयोजित किया गया है कि अपने क्षेत्र में ये मूलकृतियों से भी ज्‍यादा लोकप्रिय रहे हैं।
लक्ष्मीनाथ परमहंस की अन्य प्रकाशित कृतियों में गोस्वामी लक्ष्मीनाथ की पदावली (सं. ललितेश्वर झा, प्र. सं. 1951 ई.), लक्ष्मीनाथ गोसाँइक गीतावली (सं. पं. छेदी झा द्विजवर, प्र. सं. 1969 ई.) और परमहंस भजन-सार (सं. महावीर झा, प्र. सं. 1948 ई.) हैं। श्रीकृष्ण गीतावली के तीन संस्करण क्रमशः लक्ष्मीप्रसाद सिंह, उदितनारायण सिंह और जनार्दन झा द्वारा प्रकाशित कराए गए, लेकिन किसी पर प्रकाशन वर्ष अंकित नहीं है।